दैनिक जागरण से बातचीत में लुबना कहती हैं कि जब मैं छोटी थी तो मेरे पापा (लेखक और नाटककार जावेद सिद्दीकी) ने एक ही बात कही थी जिसें मैंने गांठ बांधकर रख लिया था। उन्होंने कहा था कि केवल काम करते जाओ। उससे पहचान मिलती रहेगी। जहां यह संतुलन बिगड़ा वहां पर तुम नकली लगने लगोगी। अगर नकली हो जाओगी तो खुद को भी नहीं पसंद आओगी।
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